वत्सासुर, बकासुर और अघासुर वध
(कृष्ण द्वारा वत्सासुर का उद्धार )
2.5 (ढाई) वर्ष की अवस्था में गोकुल से नन्द गांव में प्रस्थान किया हैं। और सुंदर लीला वत्साचरण(vatsacharan)की। जिसमे भगवान बछड़े चराने लगे हैं। दोपहर के पूर्व का समय था। श्रीकृष्ण कदंब के वृक्ष के नीचे ग्वाल-बालों के साथ खेल रहे थे। चारों ओर सन्नाटा था। अचानक श्रीकृष्ण की दृष्टि सामने चरते हुए बछ्ड़ों की ओर गई। उन बछ्ड़ों के बीच में एक अद्भुत बछ्ड़े को देखकर चौंक उठे। वास्तव में वह कोई बछ्ड़ा नहीं था, वह एक दैत्य था जो बछ्ड़े का रूप धारण करके बछ्ड़ों में जा मिला था।
वह श्रीकृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए अवसर की प्रतीक्षा में था। उसने गाय के बछ्ड़े का रूप धारण किया था, इसीलिए लोग उसे वत्सासुर कहते थे। श्रीकृष्ण ने वत्सासुर को देखते ही पहचान लिया। भगवान से कभी कुछ छुप नही सकता। श्रीकृष्ण वत्सासुर को पहचानते ही उसकी ओर अकेले ही चल पड़े। उन्होंने उसके पास पहुंचकर उसकी गर्दन पकड़ ली। और उसके पेट में इतनी जोर से घूंसा मारा कि उसकी जीभ बाहर निकल आई। वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा और बेदम हो गया। सभी ग्वाल-बाल उस भयानक राक्षस को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा करने लगे और ‘जय कन्हैया लाल की ’ के नारे लगाने लगे। शाम को जब वह लौटकर घर गए, तो उन्होंने हर जगह इस घटना को फैला दिया। गोपों और गोपियों ने जहां श्रीकृष्ण के शौर्य की प्रशंसा की, वहीं उन्होंने वत्सासुर से बच जाने की प्रसन्नता में भगवान को धन्यवाद भी कहा हैं।
(कृष्ण द्वारा बकासुर का उद्धार )
एक बगुले के रूप में बकासुर आया उसका भी उद्धार किया हैं ये पूतना का भाई था। दोपहर के पश्चात का समय था। श्रीकृष्ण दोपहर का भोजन करने के पश्चात एक वृक्ष की छाया में आराम कर रहे थे। सामने बछड़े चर रहे थे। कुछ ग्वाल-बाल यमुना में पानी पीने गए। ग्वाल-बाल जब पानी पीने बैठे तो एक भयानक जंतु को देखकर चिल्लाने लगे और बोले कन्हैया हमारी रक्षा करो, हमारी रक्षा करो!
वह जंतु था तो बगुले के आकार का, किंतु उसका मुख और चोंच बहुत बड़ी थी। ग्वाल-बालों ने ऐसा बगुला कभी नहीं देखा था। ग्वाल-बालों की पुकार सुनकर बाल कृष्ण उठ पड़े और उसी ओर दौड़ पड़े जिस ओर से चिलाने की आवाज आ रही थी। बाल कृष्ण ने यमुना के किनारे पहुंचकर उस भयानक जंतु को देखा। वह अपनी लंबी चोंच और विकराल आंखों को लिए गुड़मुड़ाकर पानी में बैठा था। बाल कृष्ण उस भयानक जंतु को देखते ही पहचान गए कि यह बक नहीं, कोई दैत्य है। और इसे कंस ने बगुले का रूप बना कर मुझे मारने के लिए भेजा हैं।
भगवान के श्री अंग में बिजली सी दौड़ गई और वे झपटकर बगुले के पास जा पहुंचे और उसकी गर्दन पकड़ ली। उन्होंने उसकी गरदन इतनी जोर से मरोड़ी कि उसकी आंखें निकल आई। वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा और परलोक पहुंच गया। बगुले के रूप में भयानक राक्षस को देखकर ग्वाल-बालों को बड़ा आश्चर्य हुआ। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर हुआ हुआ कि उनके साथी कन्हैया ने उसे किस तरह मार डाला। वे अपने कन्हैया को देवता समझने लगे, परमात्मा समझने लगे। उन्होंने सन्ध्या समय बस्ती में जाकर कन्हैया की प्रशंसा करते हुए लोगों को बताया कि किस प्रकार कन्हैया ने एक भयानक दैत्य को, जो बगुले का रूप धारण किए हुए था, मार डाला। असुरो को मारना जरुरी हैं। ये भक्ति में बाधक हैं। बकासुर पाखंड का प्रतीक हैं।
कृष्ण द्वारा अघासुर का उद्धार
वत्सासुर का वध और बकासुर की मृत्यु की ख़बर सुनकर कंस चिंतित हो उठा। उसे समझने में देर नहीं लगी के अवश्य नंदराय का पुत्र ही देवकी के गर्भ का आठवां बालक है। अतः कंस कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए अपने दैत्यों को वृन्दावन भेजने लगा।
कंस अनेक असुरों को कृष्ण को मारने के लिए भेजता हैं। अबकी बार कंस ने अघासुर को भेजा हैं। अघासुर बड़ा भयानक था। वह वेश बदलने में दक्ष तो था ही, बड़ा शूरवीर और मायावी भी था।दोपहर के पहले का समय था। गऊ और बछड़े चर रहे थे। ग्वाल-बाल इधर-उधर घूम रहे थे। बाल कृष्ण चरती गायों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। अचानक कन्हैया को कोई भी ग्वाल बाल
नही दिखाई दिया। गौए रह-रहकर हुंकार रही हैं। बाल-कृष्ण ग्वाल-बालों को पुकारने लगे, उन्हें खोजने लगे किंतु न तो उन्हें उत्तर मिला, न कोई ग्वाल-बाल दिखाई पड़ा। श्रीकृष्ण चिंतित होकर सोचने लगे, आख़िर सब गए तो कहां गए? कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है?
भगवान कुछ और आगे बढ़े। उन्होंने आगे जाकर जो कुछ देखा, उससे उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। एक भयानक अजगर रस्ते में पड़ा हुआ था, जो जोर-जोर से सांसें ले रहा था। वह कृष्ण को देखते ही और भी जोर-जोर से सांसें लेने लगा। वह अजगर नहीं, अजगर के रूप में अघासुर था। उसी ने अपनी सांसों द्वारा ग्वाल-बालों को अपने पेट के अंदर खींच लिया था। उसने सोचा था, वह कृष्ण को भी अपनी सांसों द्वारा अपने पेट के अंदर खीच लेगा, उसे क्या पता था कि जो कृष्ण सारे ब्रह्माण्ड को अपनी ओर खींच लेते हैं, उन्हें कौन खींच सकता है?
अजगर के रूप में पड़े हुए अघासुर को देखते ही कृष्ण पहचान गए, वह अजगर नहीं, कोई दैत्य है और इसी ने अपनी सांसों द्वारा ग्वाल-बालों को अपने पेट में खींच लिया है। जो यमुना के किनारे भगवान को खाने के लिए मुँह फाड़ के खड़ा हैं। वे सावधान हो गए। उधर, अजगर कृष्ण को खींचने के लिए जोर-जोर से सांसे ले रहा था। कृष्ण अपने आप ही अजगर के मुख के पास जा पहुंचे। उन्होंने दोनों हाथों से अजगर का मुख पकड़कर उसे फाड़ डाला। वे अपने आप ही उसके बहुत बड़े पेट के भीतर घुसकर अपने शरीर का विस्तार किया। इतना विस्तार किया कि अजगर का पेट फट गया। उसके पेट के भीतर से सभी ग्वाल-बाल सकुशल बाहर निकल आए।
बोलिए बालकृष्ण लाल की जय!! कृष्ण कन्हैया की जय !!